भगवान गणेश जी की पवित्र कथा | जन्म, बुद्धि और भक्ति की प्रेरणादायक कहानी

 भगवान गणेश जी की पवित्र कथा: ज्ञान, भक्ति और बुद्धि के देवता की दिव्य गाथा


हिंदू धर्म में भगवान गणेश जी को विघ्नहर्ता और सिद्धिविनायक के नाम से जाना जाता है। कोई भी शुभ कार्य हो, आरंभ गणेश जी के नाम से ही किया जाता है। वे बुद्धि, विवेक, और सफलता के देवता हैं। आइए जानते हैं गणेश जी के जन्म से लेकर उनके प्रसिद्ध कार्यों तक की पवित्र और प्रेरणादायक कहानी।

भगवान गणेश जी की पवित्र कथा


गणेश जी का जन्म माँ पार्वती की ममता से उत्पन्न


एक दिन माता पार्वती कैलाश पर्वत पर थीं। वे स्नान करने जा रही थीं, लेकिन वहाँ उनकी सेवा करने के लिए कोई नहीं था। तब उन्होंने अपने शरीर पर लगे उबटन हल्दी और चंदन के लेप से मिट्टी ली और उससे एक सुंदर बालक की प्रतिमा बनाई। उस बालक में उन्होंने प्राण फूँक दिए और कहा बेटा मैं स्नान करने जा रही हूँ। कोई भी इस द्वार से अंदर न आने पाए।


वह बालक वही थे, जो आगे चलकर गणेश जी कहलाए।


थोड़ी देर बाद भगवान शिव वहाँ आए और द्वार पर खड़े गणेश जी ने उन्हें रोक दिया। भोलेनाथ ने कहा मैं तुम्हारी माँ का पति हूँ, मुझे अंदर जाने दो।


गणेश जी बोले माता ने आदेश दिया है कि किसी को अंदर नहीं जाने देना, चाहे कोई भी क्यों न हो।


शिव जी क्रोधित हो उठे। उन्होंने अपने गणों को भेजा, लेकिन गणेश जी ने सबको हरा दिया। अंत में भगवान शिव स्वयं युद्ध के लिए आगे बढ़े। देवताओं और ऋषियों ने भी हस्तक्षेप करने की कोशिश की, लेकिन बाल गणेश जी अद्भुत शक्ति से लड़े।


अंत में, जब भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हुए, उन्होंने अपना त्रिशूल उठाया और गणेश जी का सिर काट दिया। जब माता पार्वती बाहर आईं और यह दृश्य देखा, तो उनका हृदय रो उठाया। 


वे बोलीं 


हे प्रभु आपने मेरे पुत्र का वध किया है, मैं सृष्टि का नाश कर दूँगी।


सभी देवता भयभीत हो गए। तब भगवान शिव ने माता को शांत करने के लिए कहा माता, मैं तुम्हारे पुत्र को पुनर्जीवित कर दूँगा।


उन्होंने अपने गणों को आदेश दिया कि उत्तर दिशा की ओर जाएँ और जो पहला प्राणी सोता हुआ मिले उसका सिर लाकर दें।


गणों को एक हाथी मिला, जो शांत मन से सो रहा था। उन्होंने उसका सिर लाकर भगवान शिव को दिया।

शिव जी ने वह सिर बालक के शरीर से जोड़ दिया और प्राण डाल दिए।

माता पार्वती की आँखों से खुशी के आँसू बहने लगे। उसी समय भगवान ब्रह्मा, विष्णु और अन्य देवताओं ने आकर उस बालक को गणों का ईश अर्थात् गणेश नाम दिया।


गणेश जी को वरदान और पहली पूजा का अधिकार


देवताओं ने मिलकर भगवान गणेश को अनेक वरदान दिए।

भगवान विष्णु ने कहा तुम्हारी पूजा सबसे पहले होगी।


भगवान ब्रह्मा ने कहा जो भी तुम्हारा स्मरण करेगा, उसके कार्य सिद्ध होंगे।


और भगवान शिव ने कहा तुम सदा मेरी कृपा के अधिकारी रहोगे।


तभी से किसी भी शुभ कार्य, यात्रा, विवाह, यज्ञ या पूजा का आरंभ श्री गणेशाय नम से किया जाता है।


गणेश जी और कार्तिकेय की दौड़


एक दिन भगवान शिव और माता पार्वती के दोनों पुत्र गणेश और कार्तिकेय आपस में विवाद करने लगे कि दोनों में श्रेष्ठ कौन है।


तब माता पार्वती ने कहा जो पूरे ब्रह्मांड का एक चक्कर लगाकर सबसे पहले वापस आएगा, वही श्रेष्ठ कहलाएगा।


कार्तिकेय अपने मोर पर सवार होकर तुरंत निकल पड़े। परंतु गणेश जी का वाहन तो एक छोटा सा मूषक (चूहा) था।

गणेश जी ने कुछ देर विचार किया और फिर अपने माता-पिता के चारों ओर तीन बार परिक्रमा की।


जब कार्तिकेय वापस आए, तो आश्चर्यचकित होकर बोले 

भाई, तुमने यात्रा नहीं की, फिर भी कैसे पहले पहुँच गए।


गणेश जी मुस्कुराते हुए बोले 


माता और पिता ही सारा ब्रह्मांड हैं। उनकी परिक्रमा करने से पूरे सृष्टि की परिक्रमा हो जाती है।


सभी देवता गणेश जी की बुद्धि पर मुग्ध हो गए, और उन्हें ज्ञान और विवेक के देवता का पद मिला।


गणेश जी और व्यास ऋषि महाभारत की रचना


ऋषि व्यास जब महाभारत की रचना करना चाहते थे, तो उन्हें ऐसा कोई चाहिए था जो उनका कथन बिना रुके लिख सके। उन्होंने भगवान गणेश से सहायता मांगी।


गणेश जी ने कहा ।


मैं लेखन करूंगा, लेकिन शर्त यह है कि जब तक मैं लिखूं, आप रुक नहीं सकते।


व्यास जी ने भी एक शर्त रखी आप तब तक नहीं लिखेंगे जब तक प्रत्येक श्लोक का अर्थ आप पूरी तरह समझ न लें।


इस प्रकार महाभारत की रचना शुरू हुई। गणेश जी इतनी तेजी से लिखते रहे कि कभी-कभी उनका कलम टूट जाता। तब उन्होंने अपनी एक दाँत तोड़कर लिखना जारी रखा। इसी कारण उन्हें एकदंत भी कहा जाता है।


गणेश जी के प्रतीक का अर्थ


गणेश जी का स्वरूप अत्यंत गूढ़ और दार्शनिक है।


हाथी का सिर बुद्धि और ज्ञान का प्रतीक है।


बड़ा पेट यह दर्शाता है कि हमें सब कुछ धैर्य से सहन करना चाहिए।


छोटे नेत्र एकाग्रता का संदेश देते हैं।


बड़ा कान बताता है कि हमें अधिक सुनना चाहिए और कम बोलना चाहिए।


चूहा वाहन यह दर्शाता है कि सबसे छोटा प्राणी भी महान कार्य कर सकता है।


गणेश चतुर्थी का महत्व


भाद्रपद मास की चतुर्थी तिथि को गणेश जी का जन्मदिन मनाया जाता है। इस दिन भक्त बड़े उत्साह से भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित करते हैं, भोग लगाते हैं, और गणपति बप्पा मोरया के जयकारे लगाते हैं।


दस दिन तक चलने वाले इस उत्सव के अंत में गणेश विसर्जन किया जाता है, जिसमें भक्त कहते हैं।

गणपति बप्पा मोरया, अगले बरस तू जल्दी आ ।


यह त्यौहार न केवल धार्मिक उत्सव है, बल्कि यह हमें यह भी सिखाता है कि हर शुरुआत विनम्रता और भक्ति के साथ करनी चाहिए।


गणेश जी से मिलने वाली जीवन शिक्षा


गणेश जी की कथा सिर्फ एक पौराणिक कहानी नहीं, बल्कि एक जीवन दर्शन है।


वे सिखाते हैं कि माता-पिता का सम्मान ही सच्ची पूजा है।


बुद्धि और विवेक हर बाधा को दूर कर सकते हैं।


विनम्रता और श्रद्धा जीवन में सफलता का मार्ग खोलती है।


हर छोटी चीज़ का भी अपना महत्व होता है।



निष्कर्ष


भगवान गणेश जी केवल एक देवता नहीं, बल्कि जीवन के गुरु हैं। उनकी पूजा से मनुष्य में संयम, विवेक और सकारात्मकता आती है।


विघ्नों को हरने वाले गणेश जी हमें यह सिखाते हैं कि हर कठिनाई में 

बुद्धि और धैर्य के साथ आगे बढ़ो क्योंकि जब विघ्नहर्ता साथ हों, तो कोई भी मार्ग असंभव नहीं होता।


करवा चौथ की कहानी 


कोई टिप्पणी नहीं

thanks